गांवों की स्थिति सुधारने का ख्वाब महज ख्वाब बनकर न रह जाए इस बारे में समय रहते नही सोचा गया तो आगामी समय में स्थितियां और भी पेचीदा हो सकती हैं।हम बात कर रहे हैं मनरेगा मजदूरों की जहां एक ओर प्रशासन द्वारा समय पर राशि जारी नही करने से से ग्राम प्रधान और सचिवों को भी परेशानियां उठानी पड़ती हैं।वहीं दूसरी ओर समय पर मजदूरी नहीं मिलने से मजदूर भी काम में रूचि नहीं ले रहे हैं एवम अन्य जगहों पर मजदूरी करने को विवश हैं।
तंत्र की लचर कार्यशैली के चलते जिले में अधिकांश पंचायतों को इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा है।जिसका खामियाजा मनरेगा मजदूरों को उठाना पड़ा है।जहां एक और शासन की मंशा थी की ग्रामीणों को गांवों से जोड़ कर रखने में यह योजना महती भूमिका निभायेगी।किंतु प्रशासन अपनी मंशा को जमीन पर उतरने में कामयाब में कामयाब होता दिखाई नहीं देता है।कई बार तो बायोमीट्रिक डिटेल्स मैच न करने और अन्य तकनीकी खामियों के चलते मजदूर को भी बैंक के चक्कर लगाने पड़ते हैं।मजदूरी के भुगतान को जाति के आधार पर विभाजित किया जाना भी योजना के क्रियान्वयन को संदेहास्पद बनाता है।
मनरेगा मजदूरों की मजदूरी समय से ना मिलने के कारण बहुत ही दयनीय स्थिति से गुजरना पड़ता है।यहां तक कि कभी कभी फांका भी करना पड़ता है।तपती धूप में अपना पसीना बहाने के बाद भी दो वक्त की रोटी पेटभर नसीब नही होती।यह दर्दनाक सच्चाई बयां करती है की शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही और देरी से ना जाने कितने परिवारों को नरकीय जीवन जीने का दर्द सहन करना पड़ता है।
*नरसिंहपुर जिले से राजकुमार दुबे की खास रिपोर्ट*